सेब व्यवसाय को बचाना होगा – बागवानों को MSP की गारंटी मिलनी चाहिए : सौरभ नवघरिया
रामपुर बुशहर, :
हिमाचल प्रदेश की जीवनरेखा माने जाने वाले सेब उद्योग पर संकट के काले बादल मंडरा रहे हैं। बागवानों की मेहनत से तैयार होने वाले सेब को उचित मूल्य नहीं मिल रहा, जिससे बागवान आर्थिक तंगी और निराशा में जी रहे हैं। वर्तमान में हालात यह हैं कि बागवानी में लगने वाली लागत दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। पैकिंग सामग्री,गत्ता, मजदूरी और ट्रांसपोर्ट का खर्च आसमान छू रहा है, लेकिन मंडियों में सेब का भाव लगातार गिरता जा रहा है।
बागवानों का कहना है कि जब उत्पादन लागत कई गुना बढ़ चुकी है तो मंडियों में मिलने वाली कीमतों का गिरना उनके जीवन पर गहरा संकट खड़ा कर रहा है। इन हालातों में बागवानों की एक ही मांग है कि सरकार सेब का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सुनिश्चित करे। यह मांग सिर्फ एक कीमत तय करने की बात नहीं है, बल्कि यह हिमाचल की अर्थव्यवस्था और लाखों लोगों के भविष्य की सुरक्षा का सवाल है। MSP मिलने से बागवानों को बाजार की मनमानी से राहत मिलेगी और उन्हें अपने उत्पादन का सही दाम मिल पाएगा।
भाजपा हो या कांग्रेस, सभी राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि बागवान किसी राजनीतिक दल से पहले बागवान हैं। सत्ता की कुर्सी के लिए राजनीति करने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि बागवान अपने अस्तित्व और जीवन की लड़ाई लड़ रहे हैं। हिमाचल की अर्थव्यवस्था में सेब उत्पादन की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। यह सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि लाखों लोगों की रोज़ी-रोटी का आधार है। अगर सरकार समय रहते ठोस कदम नहीं उठाती, तो बागवानों को खून के आंसू रोने पड़ेंगे। MSP की गारंटी से न केवल बागवानों को राहत मिलेगी, बल्कि यह सरकार की किसानों के प्रति प्रतिबद्धता का भी प्रमाण होगी।
युवा नेतृत्वकर्ता सौरभ नवघरिया ने बागवानों से अपील की है कि वे राजनीति से ऊपर उठकर एकजुट हों और MSP की गारंटी के लिए संघर्ष करें। सौरभ नवघरिया का कहना है कि यह समय केवल चर्चा या उम्मीद का नहीं है, बल्कि निर्णायक संघर्ष का समय है। उनका स्पष्ट संदेश है:
“आरम्भ है प्रचण्ड… आज जंग की घड़ी है। बागवान एकजुट होकर MSP की मांग पूरी कराएं। सत्ता किसी की भी हो, हमारी मेहनत का हक़ मिलना चाहिए।”
सौरभ नवघरिया हमेशा से बेबाकी और निर्भीकता की मिसाल रहे हैं। उन्होंने कभी सत्ता की चापलूसी वाली राजनीति नहीं की, बल्कि सेवा और संघर्ष के माध्यम से नेतृत्व को मजबूत किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों से गढ़े इस व्यक्तित्व ने भारतीय जनता युवा मोर्चा में रहते हुए हर उस मुद्दे को मुखरता से उठाया जो आम जनता के हित से जुड़ा था। सौरभ कहते हैं कि राजनीति में जहां पद के लिए चुप्पी साध ली जाती है, वहां वे मजलूमों की आवाज़ बनते हैं। जहां झुकने की राजनीति चलती है, वहां सच बोलने का साहस दिखाते हैं।
आज सेब व्यवसाय को बचाने की लड़ाई में भी उनकी यह सोच स्पष्ट झलकती है। उन्होंने साफ कहा है कि अब समय आ गया है कि बागवान दलगत राजनीति से ऊपर उठकर MSP की गारंटी के लिए संगठित हों। यह लड़ाई सिर्फ आज के लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए है। हिमाचल की पहाड़ियों से निकली यह आवाज़ अब हर बागवान की आवाज़ बननी चाहिए – “MSP हमारा अधिकार है, और इसके लिए हर कीमत पर लड़ना होगा।”
बागवानों की वास्तविक स्थिति : मंडियों में संकट
आज किसान-बागवान साल भर मेहनत करके भी सेब बेचते समय हताश और निराश हैं। सरकार व्यवस्था के पहलू से पूरी तरह गायब है।
यूनिवर्सल कार्टन व्यवस्था फेल : अगर सेब की पेटी 25–28 किलो (3 से 4 इंच ऊपर भरी) न हो, तो खरीदार 1200–1300 से ऊपर बोली लगाने को तैयार नहीं हैं।
दाम में भारी गिरावट : टॉप क्वालिटी सेब 1200–1800 रुपये प्रति पेटी बिक रहा है, जबकि B ग्रेड सेब केवल 600–700 रुपये तक ही बिक रहा है।
सबसे कम दाम : किसान पिछले 5–7 सालों में सबसे कम रेट पर सेब बेचने को मजबूर हैं। पिछले साल से तुलना करें तो इस बार प्रति पेटी 400–500 रुपये कम दाम मिल रहा है।
APMC की लापरवाही :
- हर आढ़ती के पास सेब तोलने के लिए कांटा रखने का आदेश था – लेकिन पालन नहीं हो रहा।
- पेटी पर वजन लिखकर बेचने की व्यवस्था का असल पतन हो चुका है।
- यूनिवर्सल कार्टन लागू करना पूरी तरह असफल रहा है।
सौरभ नवघरिया ने तीखे शब्दों में सवाल उठाया – “क्या हुआ कांग्रेस की गारंटी का?”