गोविन्द बल्लभ पंत राजकीय महाविद्यालय, रामपुर में रसायन एवं वनस्पति विज्ञान विभाग द्वारा 9 सितंबर को हिमालय दिवस बड़े जोश और गंभीर संदेश के साथ मनाया गया। इस अवसर पर पोस्टर, पावर प्वाइंट, ऑनलाइन
प्रश्नोत्तरी और स्क्रैप बुक प्रेजेंटेशन प्रतियोगिताओं के साथ हरबेरीयम एग्जिबीशन का आयोजन भी किया गया। कार्यक्रम का केंद्रीय विषय था – “Mountains are crying: Are we listening”।
वक्ताओं ने इस थीम पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पर्वत आज खामोश होकर संकट में हैं और यह हमसे सवाल पूछ रहे हैं कि क्या हम उनकी पुकार सुन पा रहे हैं। हिमालय सिर्फ पथरीली चट्टानों का समूह नहीं, बल्कि जीवनदायिनी नदियों का स्रोत, जैव विविधता का घर और जलवायु संतुलन का प्रहरी है। तीव्र शहरीकरण, अंधाधुंध खनन, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन ने इन पर्वतों पर संकट खड़ा कर दिया है। ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं, नदियों का स्वरूप बदल रहा है और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं।
इसी संदेश को छात्रों ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से चित्रित किया – किसी ने प्रदूषण नियंत्रण पर जोर दिया, तो किसी ने कचरे से ऊर्जा उत्पादन और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे समाधान प्रस्तुत किए।
• पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन में बी.एस.सी. तृतीय वर्ष के सुरेनदर को प्रथम स्थान मिला, जबकि द्वितीय स्थान अजय व तृतीय स्थान तान्या शर्मा को मिला।
• स्क्रैप बुक प्रेजेंटेशन में बी.एस.सी. तृतीय वर्ष की विजय लक्ष्मी ने पहला, दीपा ने दूसरा और कशिश गौरी ने तीसरा स्थान प्राप्त किया।
• पोस्टर प्रेजेंटेशन में बी.एस.सी. द्वितीय वर्ष की पल्लवी ने प्रथम, बी.एस.सी. प्रथम वर्ष की सरुल ने द्वितीय व बी.एस.सी. तृतीय देश की मोनिका ने तीसरा स्थान पर रहीं।
मुख्य अतिथि प्राचार्य डॉ. पंकज बासोतिया ने कहा कि हिमालय दिवस केवल उत्सव नहीं, बल्कि चेतावनी है कि यदि हम समय रहते नहीं जागे तो आने वाली पीढ़ियों को जल संकट, पर्यावरण असंतुलन और जैव विविधता की हानि का गंभीर खतरा झेलना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हिमालय धरती का ताज हैं, इसलिए उनका संरक्षण हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
कार्यक्रम का संचालन निर्णायक मंडल की भूमिका निभाने वाले डॉ॰ शिवाली ठाकुर, डॉ॰ अनीता कुमारी, प्रो॰ निर्मला नेगी, प्रो॰ अनिल कुमार, प्रो॰ पनमा नेगी के निर्देशन में हुआ। । इस कार्यक्रम में अन्य प्राध्यापक एवं लैब स्टाफ ने भी सहभागिता की।
कार्यक्रम के अंत में छात्र-छात्राओं ने सामूहिक संकल्प लिया कि वे अपने जीवन में पर्यावरण-अनुकूल आदतें अपनाएँगे, जल और ऊर्जा की बचत करेंगे और समाज में हिमालय व उसके पारिस्थितिकीय तंत्र के संरक्षण का संदेश फैलाएँगे।
