दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा श्री भीमाकाली मन्दिर सराहन,रामपुर के प्रांगण में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस की कथा में श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या भागवत भास्कर साध्वी सुश्री कालिंदी भारती जी ने अपने प्रवचनों में कहा कि भगत ध्रुव की बालक अवस्था है लेकिन वह प्रभु से मिलने की उत्कंठा लिए वन में जाकर तपस्या करनी शुरू कर देता है।जहां पर उसकी भेंट नारद जी से होती है।जो उसको ब्रह्म ज्ञान प्रदान कर उसके घट के भीतर ही ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन करवा देते हैं।आज मानव भी प्रभु से मिलने के लिए तत्पर है लेकिन उसके पास प्रभु प्राप्ति का कोई भी साधन नहीं है। हमारे समस्त वेद शास्त्रों व धार्मिक ग्रंथों में यही लिखा है कि ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए हमें गुरु की शरणागति होना पड़ता है।उन्होंने कहा कि जब भी एक जीव परमात्मा की खोज में निकलता है तो वह सीधा परमात्मा को प्राप्त नहीं कर पाता । परमात्मा अमृत का सागर है किंतु मानव उस अमृत पान से सदा वंचित रह जाता।सतगुरु से संबंध हुए बिना ज्ञान नहीं हो सकता।सुश्री साध्वी कालिंदी भारती ने कहा अगर परमात्मा को जानना है तो नारद जैसा ही मार्गदर्शक चाहिए। गुरु रूपी सूर्य के प्रकाश में तप कर ही शिष्य दुनिया को शीतलता प्रदान करने वाला ज्ञान आगे फैलाते हैं।कबीर जी को प्रकाशित करने वाले सूर्य रूपी गुरु रामानंद जी थे। नरेंद्र को विवेकानंद बनाने वाले श्रेष्ठ गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी थे। अतः गुरु के बिना हम भी उस परमात्मा तक कदापि नहीं पहुंच सकते। गुरु संसार सागर से पार उतारने वाले हैं और उनका दिया हुआ ज्ञान नौका के समान बताया गया है।मनुष्य ज्ञान को पाकर भवसागर से पार हो जाता है। पावन आरती में सुरेन्द्र मोहन एस.डी.एम.रामपुर,बालक राम नेगी (टेंपल ऑफिसर),एस.डी.ओ.विपिन बलूनी विशेष रुप से शामिल हुए। कथा के बाद सभी प्रभु भगतों के लिए भंडारे का आयोजन किया गया।