रामपुर बुशहर l सीटू से सम्बंधित सभी यूनियनों व हिमाचल किसान सभा ब्लॉक इकाई रामपुर और मिड डे मील वर्कर यूनियन ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व राष्ट्रीय फेडरेशन के आवाहन पर रामपुर में मजदूरों विरोधी लेबर कोड, मनरेगा मजदूरों, मिड डे मील वर्कर,किसानों व आउटसोर्स कर्मचारियों की मांगों और मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ खोपड़ी टेलीफोन एक्सचेंज व गोरा रोड़ से रामपुर बाजार होते हुए एसडीएम ऑफिस रामपुर तक रैली निकली। lआज क्षेत्र के सैंकड़ो मजदूरों ने सड़कों पर उतरकर केंद्र की मोदी सरकार व प्रदेश सरकार की मजदूर व कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ हल्ला बोला l रैली को संबोधित करते हुए सीटू राज्य उपाध्यक्ष , रणजीत ठाकुर,नरेन्द्र देष्टा, राजेश, रिंकू राम , हरदयाल ,कपिल हिमाचल किसान सभा के महासचिव प्रेम, अध्यक्ष हितेष हष्टा , दिनेश ने कहा कि देश की मौजूदा सरकार ने देश की जनता के जीवन को संकट में डाल दिया है।आज और कल 29 मार्च की हड़ताल देश के करोड़ों लोगों द्वारा मोदी सरकार की मजदूर, कर्मचारी, किसान, महिला, नौजवान, छात्र, दलित विरोधी नीतियों के खिलाफ की जा रही है। उन्होंने कहा है कि 28-29 मार्च को राष्ट्रीय आह्वान पर रामपुर क्षेत्र के सभी उद्योगों व संस्थानों में हड़ताल रहेगी l नेताओं ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में कार्य कर रही है व मजदूर विरोधी निर्णय ले रही है। पिछले सौ सालों में बने चौबालिस श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता,मजदूरों व किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों व कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है। यह साबित हो गया है कि यह सरकार मजदूर,कर्मचारी व जनता विरोधी है व लगातार गरीब व मध्यम वर्ग के खिलाफ कार्य कर रही है। सरकार की पूँजीपतिपरस्त नीतियों से अस्सी करोड़ से ज़्यादा मजदूर व आम जनता सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है। सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए बारह घण्टे के काम करने का आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है। आंगनबाड़ी,आशा व मिड डे मील योजनकर्मियों के निजीकरण की साज़िश की जा रही है। उन्हें वर्ष 2013 के पैंतालीसवें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स,ठेका,दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है। केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है। सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए पन्द्रहवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हज़ार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है। मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी परिवर्तनों से वे रोज़गार से वंचित हो जाएंगे व विदेशी कम्पनियों का बोलबाला हो जाएगा। मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के कारण कोरोना काल में करोड़ों मजदूर बेरोज़गार हो गए हैं। मजदूरों को नियमित रोज़गार से वंचित करके फिक्स टर्म रोज़गार की ओर धकेला जा रहा है। वर्ष 2003 के बाद नौकरी में लगे कर्मचारियों का नई पेंशन नीति के माध्यम से शोषण किया जा रहा है। उन्होंने मांग की है कि मजदूरों का न्यूनतम वेतन इक्कीस हज़ार रुपये घोषित किया जाए। केंद्र व राज्य का एक समान वेतन घोषित किया जाए। किसानों की फसल के लिए स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें लागू की जाएं। महिला शोषण व उत्पीड़न पर रोक लगाई जाए। नई शिक्षा नीति को वापिस लिया जाए। बढ़ती बेरोज़गार पर रोक लगाई जाए व बेरोज़गारी भत्ता दिया जाए। आंगनबाड़ी,मिड डे मील,आशा व अन्य योजना कर्मियों को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए। मनरेगा में दो सौ दिन का रोज़गार दिया जाए व राज्य सरकार द्वारा घोषित साढ़े तीन सौ रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए। श्रमिक कल्याण बोर्ड में मनरेगा व निर्माण मजदूरों का पंजीकरण सरल किया जाए। निर्माण मजदूरों की न्यूनतम पेंशन तीन हज़ार रुपये की जाए व उनके सभी लाभों में बढ़ोतरी की जाए। कॉन्ट्रैक्ट,फिक्स टर्म,आउटसोर्स व ठेका प्रणाली की जगह नियमित रोज़गार दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयानुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए। नई पेंशन नीति(एनपीएस) की जगह पुरानी पेंशन नीति(ओपीएस) बहाल की जाए। बैंक,बीमा,बी.एस.एन.एल.,रक्षा,बिजली,परिवहन,पोस्टल,रेलवे,एन.टी.पी.एस.,एन.एच.पी.सी.,एस.जे.वी.एन.एल.,कोयला,बंदरगाहों,एयरपोर्टों,सीमेंट,शिक्षा,स्वास्थ्य व अन्य सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश व निजीकरण बन्द किया जाए। मोटर व्हीकल एक्ट में परिवहन मजदूर व मालिक विरोधी धाराओं को वापिस लिया जाए। चबालिस श्रम कानून खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं(लेबर कोड) बनाने का निर्णय वापिस लिया जाए। सभी मजदूरों को ईपीएफ,ईएसआई,ग्रेच्युटी,नियमित रोज़गार,पेंशन,दुर्घटना लाभ आदि सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जाए। भारी महंगाई पर रोक लगाई जाए। पेट्रोल,डीज़ल,रसोई गैस की कीमतें कम की जाएं। रेहड़ी,फड़ी तयबजारी क़े लिए स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट को सख्ती से लागू किया जाए। सेवारत महिला कर्मचारियों को दो वर्ष की चाइल्ड केयर लीव दी जाए। सेवारत कर्मचारियों की पचास वर्ष की आयु व तेंतीस वर्ष की नौकरी के बाद जबरन रिटायर करना बंद किया जाए। सेवाकाल के दौरान मृत कर्मचारियों के आश्रितों को बिना शर्त करूणामूलक आधार पर नौकरी दी जाए।