सीटू का छटा इकाई सम्मेलन संपन्न

महात्मा गांधी मेडिकल सर्विस ठेका मजदूर यूनियन (सम्बंधित सीटू) का छठा इकाई सम्मेलन खनेरी में हुआ।

इस सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए सीटू शिमला जिलाध्यक्ष कुलदीप सिंह व अमित ने कहा कि देश की मोदी सरकार खुले तौर पर पूंजीपतियों के पक्ष खड़ी हुई है और देश को बेचने के लिए आमादा है देश के सविधान, जनतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर हमला किया जा रहा है पिछले सौ साल के अंतराल में बने 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी 4 श्रम संहिताएं व बिजली संशोधन कानून 2021 को लागू करने के लिए एकदम ततपर रहना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार 2020 से मजदूरों के 44 कानूनों को खत्म करने व सार्वजनिक क्षेत्र को बेचने के लिए लगातार कार्य कर रही है। सरकार के इन निर्णयों से बहुत अधिक संख्या में मजदूर व आम जनता सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं।

         उन्होंने ने कहा है कि केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह पूँजीपतियों के साथ खड़ी हो गयी है व आर्थिक संसाधनों को आम जनता से छीनकर अमीरों के हवाले मुफ्त में करने के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के तहत मोदी सरकार  बैंक, बीमा, रेलवे, सड़क, बीएसएनएल ,एयरपोर्टों, स्टेडियम, बिजली , बंदरगाहों, ट्रांसपोर्ट, गैस पाइप लाइन, बिजली, सरकारी कम्पनियों के गोदाम व खाली जमीन, सड़कों, स्टेडियम सहित ज़्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करके बेचने का रास्ता खोल दिया गया है। इस से केवल पूंजीपतियों, उद्योगपतियों व कॉरपोरेट घरानों को ही फायदा हो रहा है व गरीब और ज़्यादा गरीब हो रहे हैं।

                खुद को गरीबों की सरकार कहने वाली मोदी सरकार गरीबों को खत्म करने पर आमदा है। देश में महंगाई व बेरोजगारी पिछले 45 सालों के रिकॉर्ड तोड़ दिया है जिस पर  काबू न करने से आम लोगों को अपना जीवन यापन करना मुश्किल हो गया है पिछले 1 वर्ष में 33 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार हुए  है। सबसे गरीब तबका व सबसे ज़्यादा महिलाएं जो  मनरेगा मैं कार्य करती है मनरेगा कानून में बजट की कमी के कारण उन्हें रोजगार नहीं मिल पा रहा है और जिनको मनरेगा में काम मिल रहा है उन्हें समय पर  वेतन नही मिलने से हताशा की स्थिति पैदा हो गई है दूसरे तरफ आवश्यक बस्तुओं के दामों में लगातार बढ़ोतरी से अपना जीवन यापन करना मुश्किल हो  रहा है।देश में कोरोना महामारी के कारण उद्योग बन्दी व अन्य क्षेत्रों में काम बन्दी होने से मजदूरों का गांव की ओर रिवर्स माइग्रेशन हुआ है व बेरोजगार जनता के लिए मनरेगा रोज़गार का सबसे बड़ा साधन बनकर उभरा है। मनरेगा में बजट कम होने से समय पर रोजगार न मिलने से देश में बेरोज़गारी बढ़ रही है जिसने पिछले 45 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है देश की जनता व बेरोजगार युवाओं में हताशा पैदा कर दी है।

हिमाचल प्रदेश में सता में आई सरकारों के द्वारा आउटसोर्स मजदूरों को चुनाव से पूर्व नीति बनाने का झांसा दिया जाता रहा है परंतु अभी तक कोई स्थायी नीति नहीं बनाई जा रही है प्रदेश की जयराम सरकार भी पिछले 1 साल से स्थायी नीति बनाने की बात कर रही है जबकि कमेटी का गठन भी किया गया पर अभी तक नीति नहीं बनी। जबसे भाजपा सरकार बनी है तब से लगातार मजदूर विरोधी फैसले ले रही है हिमाचल सरकार ने काम के घंटे 8 से 12 करने की अधिसूचना जारी की है जिससे मजदूरों को गुलाम बनाने का मसौदा तैयार किया गया है। हिमाचल प्रदेश के मजदूरों को 15वें श्रम सम्मेलन के निर्णय के हिसाब से वेतन नहीं मिल रहा है और वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है।प्रदेश सरकार के द्वारा आउटसोर्स मजदूरों को कोई स्थायी नीति नहीं बनाई जा रही है। सम्मेलन में निर्णय लिया गया है कि आउटसोर्स मजदूरों के लिए स्थायी नीति बनाने के लिए संघर्ष तेज किया जाएगा।

सम्मेलन मैं 7 सदस्यों की कमेटी का गठन किया गया जिसमें सुनामनी को अध्यक्ष, राजन को उपाध्यक्ष , आशा को महासचिव, भुवनेश्वर को सचिव नीमू को कोषाध्यक्ष सीता, उर्मिला को सदस्य चुना गया ।

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