अगस्त को ब्लॉक स्तर पर मनरेगा मे 350 रूपये देनिक मजदूरी और साल मे 200 दिनो के रोजगार के लेकर होंगे धरने प्रदर्शन।

10 अगस्त को ब्लॉक स्तर पर मनरेगा मे 350 रूपये देनिक मजदूरी और साल मे 200 दिनो के रोजगार के लेकर होंगे धरने प्रदर्शन।

22 अगस्त को श्रमिक कल्याण कार्यालय रामपुर का होगा घेराव।

आज दिनांक 25 जुलाई 2022 को हिमाचल प्रदेश भवन, सड़क एवं अन्य निर्माण मजदूर यूनियन (सम्बंधित सीटू) की जिला कमेटी शिमला की बैठक किसान मजदूर भवन रामपुर मे हुई।

बैठक मे मनरेगा व निर्माण मजदूरों की समस्याओं को लेकर चर्चा हुई।केंद्र सरकार ने मनरेगा के लिये पिछले वर्ष के संशोधित बजट 98000 करोड़ रुपये से कम कर इस वर्ष के लिए बजट में केवल 73000 करोड़ रुपये ही रखे हैं।  इससे ही स्पष्ट हो जाता है कि ग्रामीण भारत की बड़ी आबादी की जीवन रेखा ‘मनरेगा’ में न तो काम के दिन बढ़ने की गुंजाईश छोड़ी गई थी और न ही मज़दूरी की दर बढ़ने की। मनरेगा कार्यों की असेसमेंट के नाम पर दैनिक मजदूरी में कटौती की जा रही है, जिसके कारण मज़दूरों को निर्धारित 212 रूपए की मज़दूरी भी वास्तव में नहीं मिल रही है। मनरेगा अधिनियम, 2005 की धारा 6 केंद्र सरकार को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के किसी प्रावधान से बंधे बिना मज़दूरों के लिए मजदूरी तय करने का अधिकार देती है। मनरेगा मज़दूरों की दैनिक मज़दूरी खेत मज़दूरों की दैनिक मज़दूरी के बराबर होगी। राज्य सरकार द्वारा खेत मजदूरों का निर्धारित न्यूनतम दैनिक मज़दूरी 350 रूपये है। इसलिये मनरेगा मजदूरों का वेतन भी 350 रूपये होना चाहिये।

मनरेगा व निर्माण मजदूरों की सहायता के लिए बने हिमाचल प्रदेश राज्य श्रमिक कल्याण बोर्ड का वर्तमान सरकार द्वारा राजनीतिकरण किया जा रहा है। सरकार ने आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए बोर्ड के बजट में से करोड़ों रुपए प्रचार सामग्री पर खर्च कर दिए हैं । यही नहीं बोर्ड से मजदूरों के बच्चों की पढ़ाई के लिए मिलने वाली शिक्षण छात्रवृत्ति, विवाह शादी, चिकित्सा, प्रसूति व पेंशन इत्यादि हेतु मिलने वाली सहायता राशि भी पिछले 2 सालों से जारी नहीं हो रही है। मजदूरों के पंजीकरण में भी देरी हो रही है।

दूसरी तरफ केंद्र की मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में लागातार तेजी के साथ कार्य कर रही है व मजदूर विरोधी निर्णय ले रही है। पिछले सौ साल के अंतराल में बने 44 श्रम कानूनों को खत्म करके जिसमें निर्माण मजदूरों का 1996 का BOCW कानून भी शामिल हैं को बदलकर मजदूर विरोधी 4 श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह पूँजीपतियों के साथ खड़ी हो गयी है व आर्थिक संसाधनों को आम जनता से छीनकर अमीरों के हवाले करने के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। बजट में बैंक, बीमा, रेलवे, एयरपोर्टों, बंदरगाहों, ट्रांसपोर्ट, गैस पाइप लाइन, बिजली, सरकारी कम्पनियों के गोदाम व खाली जमीन, सड़कों, स्टेडियम सहित ज़्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करके बेचने का रास्ता खोल दिया गया है। ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस के नारे की आड़ में मजदूर विरोधी लेबर कोडों को अमलीजामा पहनाया है। इस से केवल पूंजीपतियों, उद्योगपतियों व कॉरपोरेट घरानों को फायदा होने वाला है व गरीब और ज़्यादा गरीब होगा।

बैठक मे तय किया गया कि विधानसभा के मानसून सत्र दौरान हिमाचल प्रदेश मे 10 अगस्त को हर ब्लॉक स्तर पर मनरेगा मे 350 रूपये देनिक मजदूरी और साल मे 200 दिनो के रोजगार को लेकर प्रदर्शन किये जाएंगे।

निर्माण मजदूरो की समस्याओं की लेकर 22 अगस्त को श्रमिक कल्याण कार्यालय रामपुर का घेराव किया जाएगा।

बैठक मे सीटू शिमला जिला के महासचिव अजय दुल्टा, निर्माण मजदूर यूनियन शिमला जिला महासचिव अमित, अधयक्ष सुनिल मेहता, रणजीत ठाकुर, हरदयाल, कश्मीरी, कपिल, संसार चन्द, नरेश कुमार, परस राम, काकू कश्यप, बलवीर, गुडू, प्रेम सिन्घानिया, नरेश गुप्ता आदि मौजूद रहे

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